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महावीर का अन्तस्तल
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स्वीकार कर रक्खी है और विवाह की मर्यादा को जो ढीला बना रक्खा है उसे सुधारने की जरूरत है । बहुविवाह को सम्भवतः मैं न रोक सकूंगा फिर भी विवाह के विना सम्मिलन को अवैध तो ठहराना ही होगा | तीर्थ प्रवर्तन के बाद मैं यह सब
करूंगा !
उदासीनता का दूसरा कारण यह है कि मैं जानता हूँ कि अमुक जगह रोकने से प्रतिक्रिया ही होगी तब वहां रोकने से क्या फायदा ? अवसर देखकर ही प्रयत्न करना चाहिये । अपनी शक्ति को व्यर्थ खर्च न करना चाहिये और न अपने शब्दों में मोघता आने देना चाहिये । गोशाल मेरी इस नीति को नहीं समझपाता ।
३४ - एक राज्य की आवश्यकता
२३ जिन्नी ६४३५ इतिहास संवत्
कल सन्ध्या को ही मैं चोराक गांव के बाहर आगया था । रातभर तो मैं आराम से सोया, चौथे पहर में खड़ा होकर ध्यान करने लगा । दिनभर के लिये मैंने मौत लेलिया था । मौन से चिन्तन में बड़ा सुभीता होता है, कम से कम गोशाल के साथ बड़बड़ करने से बच जाता हूँ ।
सूर्योदय होने के बाद राज्य के आरक्षक आये और पूछा तुम लोग कौन हो ?
मौन होने से मैं तो चुप रहा, गोशाल बोला- हम लोग परित्राजक साधु है ।
आरक्षक यहां क्यों आये ?
गोशा- हमारी इच्छा हुई सो हम आये, क्या आने की भी मनाई है ?