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म पवार का अन्तस्तल
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सचमुच गंगा नदियों की रानी है। चौड़ी तो यह है ही, पर गहराई में कदाचित् ही कोई नदी इस की बराबरी कर सके.और जल तो इसका इतना अच्छा है कि उसे अमृत ही कहना चाहिये। पर प्रकृति के इस सौन्दर्य का मैं क्या करूं ? इस गंगा से भगीरथ के पुरखों का कैसे उद्धार होगया, कौन जाने, पर मुझे तो मानव जाति का उद्धार करना है, झुनका उद्धार इस गंगा से न होगा, उसके लिये जिल ज्ञानगंगा को लाना है उसके लिये भगी. रथ से अधिक और उच्चश्रेणी की तपस्या मुझे करना है। इस जड़ गंगा का मेरे लिये क्या मूल्य है ? इसके तो पार ही जाना चाहिये।
में नदी किनारे आया। एक नाव पार जाने के लिये छूटनेवाली थी। बहुत सं यात्री उसमें घंठ गये थे इतने में पहुंचा में। मल्लाह ने मुझे देखते ही कहा-आओ देवार्य, इस सिद्धदन्त की नाव को पवित्र करो। मैं बैठ गया। नाव चलने लगी। इतने में आया तूफान ।
___ ग्रीष्म ऋतु में कभी कमी वायु का वेग काफी प्रबल होजाता है। पर आज की प्रबलता कल्पनातीत थी । जब नाव मझधार में पहुंची तब वायु का वेग इतने जोर का बढ़ा कि सद कहने लगे यह संवतक (प्रलय कालका वायु) है। नौका दाय वायें इस प्रकार डोलने लगी मानों वह भूतापेश में आगई हो। समी लोग घबरागये। पर मैं शान्त रहा। सोचा घबराने से अगर तुफान शान्त नहीं होसकता तो घबराने से क्या लाभ ? .
मेरी नग्नता के कारण मुझपर सब की दृष्टि थी ही, परं मेरे शान्त रहने के कारण और भी आधिक होगई। मेरे बारे में सभी लोग कानाफूसी करने लगे। एक बोला-यह तूफान इसी. देवार्य के कारण मालूम होता है अन्यथा ऐसा तूफान तो आज तक नहीं देखा।