________________
१२० ]
महावीर का अन्तस्तल
हरएक को अच्छा मालूम होने पर भी बाल विवाह जीवन के लिये घातक है उसी तरह सिद्धि पाये बिना सिद्ध की तरह पुजना जीवन के लिये घातक है ।
अगर विना सिद्धि पाये मैं यहां सत्कार पाता रहा तो सत्कार के जाल में फँसकर ही मेरा जीवन मोघ होजायगा । सत्कार एक प्रलोभन है और सब से बड़ा प्रलोभन है, इसका सामना करना बड़ा कठिन है । विपदाएँ होनवार्य व्यक्ति के लिये ही आकर भ्रष्ट कर पाती हैं पर सत्कार बलवान व्यक्ति को भीलुमाकर भ्रष्ट कर देता है । मुझे इस सत्कार को ठुकराना होगा, सत्कार पर विजय करना होगी, सत्कार परिवह जीते बिना मेरी प्रगति असम्भव है। सत्य के पूर्ण दर्शन होने के बाद सत्कार सत्य के प्रचार की सामग्री चनजाता है उससे व्यक्ति के पतन की ऐसी सम्भावना नहीं रहती, पर साधक अवस्था में सत्कार वह पौष्टिक खुराक हैं जिसे साधक पत्रा नहीं सकता, वह अर्थात् उसका आत्मा असका जीवन, रुग्ण होकर मरता है पतित होता है । इन विचारों से मैंने श्वेताम्बी नगरी छोड़ दी। यहां अभी चौमासा करने का विचार भी छोड़ दिया । 10- संवर्तक ( बड़ा तूफान
२५ बुध ६४३३ इ. सं.
श्वेताम्बी नगरी से निकलकर में भ्रमण करता हुआ सुरभिपुर पहुँचा । छोटा सा अच्छा नगर है । पर मनमें राजगृह नगर पहुंचने की इच्छा थी । सम्भव है सिद्धि प्राप्त करलेने पर सत्यप्रचार के लिये राजगृह अनुकूल क्षेत्र सिद्ध हो। इस विचार से सुरभिपुर छोड़ दिया । पर राजगृह आने के लिये गंगा पार करना जरूरी था । यद्यपि ग्रीष्म ऋतु होने से गंगा की धारा की चौड़ाई कम रहगई है फिर भी विशाल है और अगाध भी है ।
: