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महावीर का अन्तस्तल
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भागसेन, भले ही वे छोटे भाई है पर क्या इसीलिये उन्हें मार कर खाजाना चाहिये ?
. नागसेने शक होकर रहगया । क्षणभर उसके मुंह से एक शब्द न निकला, फिर सम्हलकर बोला-पेमा सूक्ष्म विचार तो आज तक किसी श्रमण ब्राह्मण के मुंह से नहीं सुना भगवन् ।
में-सुनने का समय नहीं था नागसेन ! कृषि का विकास न होसफने से और पशुओं के उपद्व की बहुलता होने से यह सूक्ष्म विचार सुनने को कोई तैयार नहीं था नागसेन, पर अब परिस्थिाने बदलगई है, पशुओं की हमें जरूरत है और अन्न से सारी जनता पेट भर सकती है, ऐसी अवस्था में पीढ़ियों से जो ऋग्ता हिंसा हम करते आये हैं उसे त्यागना होगा, पशुओं के साथ भी कौटुम्बिकता निभाना होंगी।
नागसेन के मनपर मेरी बातो का प्रभाव पड़ा । वह भक्ति से हाथ जोड़कर बोला-धन्य है भगवन, आपको दया अनन्तं है, कौटुमित्रकता असीम है । ऐसे महाभाग के पधारने से मेरी सात. पीढ़ियाँ तरगई । भगवान के लिये में अभी दूसरा पवित्र निरामिष भोजन तैयार कराता हूँ, जिस ढंग में, और जो · कहिये वह । ..
मैंने कहा-नागसेन, सच्चा श्रमण समाज के लिये बोझ नहीं होता। वह . समाज को कोई विशेष क; पहुँचाये विना शरीर स्थिति के लिये कुछ इंधन लेलेना चाहता है । वह बचें खुचे से गुजर कर लेना चाहता है इसलिये वह अद्दिष्ट त्यागी होता है। तुम मेरे लिये जो भोजन तैयार कंगेगे वह मेरे लिये अग्राह्य होगा इसलिये मेरे लियें भोजन बनाने तैयारी न करो। ... : मेरी बात सुनते ही नागमेन की आंखें डबडया आई, उसके आंठ कांपने लगे पर सलाई का धमान सहपाये, नागसेन.