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महावीर का अन्तस्तल
कितनी लज्जा की बात है कि इस देश का चरित्र इतना गिर गया है कि ब्रह्मचर्य की आवश्यकता लोग समझते ही नहीं । दाम्पत्य बहुत शिथिल होगया है । अगर यही दशा रही तव मनुष्य का और पशु का अन्तर मिटजायगा, घर घुड़साल से भी भी बुरे बन जायेंगे। साधु भी काम के जाल में फँसकर मोघजीवी चिट वन जायँगे ।
इसलिये मैंने निश्चय किया है कि जब मैं अपना संघ बनाऊंगा तब ब्रह्मचर्य पर बहुत बल दूँगा, इसे एक मुख्य वरत बनाऊंगा, साधुसंस्था में ब्रह्मचर्य अनिवार्य कर दूँगा । देशकाल को देखते हुए मुझे यह आवश्यक ज्ञात होता है । लैंगिक असंयम भी इस युग की मुख्य समस्या बनी हुई है । उस पर विजय पाने के लिये मुझे उसके बाहरी साधनों से बचना बचाना पड़ेगा | तपस्याएँ करना कराना पड़ेगी, देह दण्ड भोगना पड़ेंगे । यही कारण हैं कि मुझे अपना केशलौंच कर लेना पड़ा । जब में भिक्षा लेने के लिये ग्राम की ओर जारहा था तव ग्राम के पास मुझे चार पांच युवतियां इठलाती हुई आती मिलों और मेरा रास्ता रोककर खड़ी होगई। एक हँसती हुई, बोली- मदनराज ! यह श्रमण का वेष क्यों बनाया है ?
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दूसरी वोली - ऊपर से वेष बनाने से क्या होता है ये. घुंघराले बाल कामदेवत्व को स्पष्ट ही प्रगट करते हैं ।
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तीसरी बोली- अरी इसमें तो न जाने कितनी रतिदेविया फंसकर रह जायगी ।
:: चौथी बोली- हम तो सब की सब फंस ही गई है ?
उन लोगों की बातें सुनकर मुझे इस बात कर बड़ा खेद होरहा था कि मेरे केशों ने मेरे सौंदर्य को इतना बढ़ा रक्खा है कि इन विवेकहीन युवतियों का असंयम अद्दीप्त होरहा है । इसलिये
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