________________
[ <?
देवी- आपक रूप पारही थी देव! सोचा जावनभर सेना ही है, यह अन्तिम रात्रि है, जितना पी
तो
> सकूँ पी लूँ !.
महावीर का अन्तस्तल
मैंने कहा - मोक्ष के सिवाय क्या कभी काम से प्यास बुझी है देवी ?
देवी चुप रही।
मैंने कहा - इस तरह धीरज खोने की आवश्यकता नहीं है देवि! तुम्हें तो अपनी दानवीरता का अनुभव करना है। लाखों सुवर्ण मुद्राओं का दान करने वालों की दानवीरता तुम्हारी इस दानवीरता के आगे पासंग भी नहीं है। वे सुवर्ण के टुकड़ों का दान करते हैं पर हृदय के टुकड़ों का या पूरे हृदय का दान वे नहीं कर पाते । तुमने तो आज अपने हृदय का जीवन के उन सुखों का. जिसके लिये लोग न जाने कितने पाप करते हैं, दान किया हैं; और यह सब किसी स्वर्ग की लालसा से नहीं, किन्तु विश्व के कल्याण के लिये किया है, इस महान गौरव को पाने वाली सीमन्तिनी मुझे कोई दिखाई नहीं देती। आये दिन युद्ध होते रहते हैं, हजारों योद्धा मारे जाते हैं, लाखों महिलाओं के आंसुओं से समुद्र का खारापन चढ़ता जाता है, वह खारापन रोकना है, आंसू बहाकर वह बढ़ाना नहीं है। दुदैव से लुटी हुई उन अभा गिनी महिलाओं में तुम्हें अपनी गिनती नहीं कराना है, कंगाली और त्याग को एक नहीं बनाना है । कल देश में वह कौन स्त्री होगी जो विश्वकल्याण के लिये सर्वस्व का त्याग करने वाली यशोदा देवी के सामने सिर ऊंचा करके चल सकेगी ? पर अगर तुम दनिता का अनुभव कर स्वयं ही अपना सिर नीचा करलो तो दूसरों का सिर आप ही ऊंचा रह जायगा । यह तो विलास के सामने त्याग की हार होगी। यह सब वर्धमान की पत्नी के योग्य नहीं ह ।
.
•