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सुदंष्ट्र लज्जित होकर अपने दुष्कृत्य से बाज आया । सभी यात्री श्रमण महावीर का नाम स्मरण करते-करते,कुशलता पूर्वक नदी के तट पर पहुंच गये ।
प्र. १५० म. स्वामी को सुदंष्ट्र देव ने उपसर्ग क्यों दिया था ?
बताया गया है कि १८वें त्रिपृष्ठ वासुदेव के भव में जिस गुहावासी सिंह को हाथ से चीर डाला था । वह कई भवों के बाद सुदंष्ट्र नाम का देव हुआ और प्रभु महावीर को नाव में यात्रा करते देखकर उसे पूर्व वैर का स्मरण हो आया । प्रभु' तो द्व ेषमुक्त थे, पर नागकुमार ने द्व ेषवश गंगा में यह तूफान उठाकर उन्हें इस प्रकार जलोपसर्ग कष्ट देना चाहा । दिया था ।
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प्र. १५१ म. स्वामी नाव से उतर कर कहाँ गये थे ? श्रमण महावीर नाव से उतर कर गंगा के शांत रेतीले मैदान पर चलते हुए 'थुरणाक' सन्निवेश के परिसर में पहुंचे और एकान्त में ध्यानारूढ़ हो गये ।
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