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तोड़ने लगे, चंडकौशिक ने मना किया। राजकुमारों ने उनकी बात नहीं सुनी, तब क्रोध में आकर चंडकौशिक कुमार हाथ में कुल्हाड़ा लेकर उन्हें मारने दौड़ा। राजकुमार तेजी से भागे, चंडकौशिक उनका पीछा करता हुआ एक खड्ड में जा गिरा और उसी कुल्हाड़े से उसके सिर में गहरी चोट लगी। उसके प्रारण वहीं निकल गये। वहीं चंडकौशिक कुमार मृत्यु के पश्चात् उसी उद्यान में चंडकौशिक
सर्प बना। प्र. १३० चंडकौशिक सर्प की मृत्यु के बाद कहाँ जन्म
हुना था। १८ सागरोपम की उत्कृष्ट स्थिति वाल सहस्त्रार नाम के आठवें देवलोक में एका.
वतारी देव हुआ। प्र. १३१ चंडकौशिक सर्प देव का आयुष्य पूर्णकर कह
उत्पन्न होगा? उ. महावि देह क्षेत्र में। प्र. १३२ म. स्वामी चंडकौशिक सर्प को प्रतिबोधित
कर वहाँ कितने दिन रहे ? २५ दिन तक ध्यानस्थ अवस्था में रहे।