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मनुष्य दिखाई दिया है शायद रास्ता भूल गया होगा या मृत्यु ने ही इसे मेरे पास ला खड़ा कर दिया होगा। अपनी विषमयी तीव्र दृष्टि से उसने महावीर की ओर देखा, अग्निपिण्ड से जैसे ज्वालाएं निकलती हैं वैसे ही उसकी विपाक्त आँखो से तीव्र विपमयी ज्वालाएँ निकलने लगीं। साधारण मनुष्य तो तत्काल जलकर राख हो जाता। महावीर पर तो कोई प्रभाव नहीं हुआ। नाग ने पुनः सूर्य के समक्ष देखकर तीक्ष्ण दृष्टि से महावीर की ओर देखा, इस बार भी उसका प्रभाव खाली गया दूसरे प्रयास में भी निष्फल! नाग कोध में आग बबूला हो गया । फन को तान कर पूरी शक्ति के साथ उसने महावीर के अंगूठे पर डंक मारा, और जरा पीछे हट गया। कहीं यह मूछित
होकर मुझ पर ही न गिर पड़े। प्र. ११७ म. स्वामी को चंडकौशिक ने अंगूठे में डंक
मारा तव क्या हुआ था ? क्रोधाविष्ट नागराज का तीसरा आक्रमण भी निष्फल गया। उसके पाश्चर्य का कोई