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नवनीत से भी अधिक कोमल, शिरीष पुष्प से । भी अधिक मृदु ! अहिंसा के परम आराधक महावीर को यह भी कैसे अभीष्ट होता ? फिर उनका संकल्प था अप्रीतिकर स्थान में नहीं रहना । जहाँ प्रेम-क्षेम नहीं, वहाँ क्षण भर भी ठहरना नहीं। पर दुःख कातर महा वीर एक दिन किसी को कहे बिना ही मोराक
सनिवेश से वाचाला के पथ पर चल पड़े। प्र. ११४ म. स्वामी को वाचाला ग्राम की ओर विहार
करते मार्ग पर किसका उपसर्ग आया था? . उ. चंड कौशिक सर्पका और सुदंष्ट्र देव का । 'प्र. ११५ म. स्वामी को चंडकौशिक सर्पका उपसर्ग कहाँ
पर आया था?
कनकखल आश्रम में। ११६ म. स्वामी को चंडकौशिक सर्प ने उपसर्ग कैसे
दिया था? जंगल में धूमता हा सर्प अपनी बांबी के पास पहुँचा। सामने एक मनुष्य को आँख मूंदे निश्चल खड़ा देखकर उसे बड़ा आश्चर्य हुआ। बहुत दिनों के बाद इस निर्जन प्रदेश में यह
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