________________
(४) सुवर्णमय और रत्न (४) उत्पल नहीं समझ मय दो पुष्पमालाएँ। पाया, अतः महावीर
ने ही स्पष्ट किया 'मैं साधु धर्म एवं श्रावक धर्म यों दो प्रकार के धर्म की
प्ररूपणा करूंगा।" (५) सेवा में उपस्थित (५) श्रमण-श्रमरणी, श्रवक गो वर्ग।
श्राविका रूप चतुर्विध संघ यापकी सेवा में
रहेगा। (६) पुष्पित कमलों वाला (६) चतुर्विध देव सेवा
विशाल पद्म-सरोवर करते रहेंगे। (७) महासमुद्र को भुजाओं (७) संसार समुद्र को पार से पार करना।
करेंगे। (८) जाज्वल्यमान सूर्य (८) केवल जान शीघ्र
का आलोक चारों प्राप्त करेंगे। · ओर फैल रहा है। (६) अपनी अंतड़ियों से (६) सम्पूर्ण लोक को - मानुपोत्तर पर्वत को अपने निर्मल यश से - आवेष्टित करना। व्याप्त करेंगे।