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प्रकृति वाला है। वह निरंतर छ? तप का पारणा करते हुए सूर्य के सामने ऊँची भुजाएँ करके अातापना लेता है। दुष्कर तप, शुभ परिणाम और प्रशस्त लेश्याओं के कारण उसे वैक्रिय लब्धि, वीर्य लब्धि और अवधिज्ञान लब्धि प्राप्त हुई है। इन लब्धियों के कारण अंबड़ अपने सौ रूप बनाकर सौ घरों में रहता और भोजन करता हुआ लोगों को आश्चर्यान्वित करता है। वह हरी वनस्पति का छेदन-भेदन तो दूर स्पर्श तक नहीं करता तथा
अर्हन्तों (निर्गन्थों) का अनन्य भक्त है।" प्र. ५७९ म. स्वामी ने ३१ वाँ चातुर्मास कहाँ
किया था ? उ. वैशाली नगर में। प्र. ५८० म. स्वामी चातुर्मास के बाद कहाँ पधारे थे ?
प्रभु चातुर्मास के बाद काशी-कौशल देश होते हुए ग्रीष्म काल में विदेह भूमि पधारे ।' वहां
से प्रभु वाणिज्यग्राम पधारे थे। . प्र. ५८१ म. स्वामी वाणिज्य ग्राम में कहां विराजे थे ?
उ. . ध तिपलाश उद्यान में।