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( ३.३ ) एक कोने पर अग्नि करण रख दिया, संघाटी
जलने लगी। प्र. ५३३ साध्वी प्रियदर्शना ने ढंक श्रावक से क्या
कहा था ? प्रियदर्शना ने जब अपनी संघाटी जलती देखी तो उसने ढंक श्रावक से कहा-"आर्य ! यह
क्या किया ? आपने मेरी संघाटी जला दी ? श्रे. ५३४ ढंक श्रावक ने प्रियदर्शना को क्या प्रत्युत्तर
दिया था ? "आर्ये ? प्राप मिथ्या भाषण क्यों कर रही हैं ? संघाटी अभी जली कहाँ, जलनी शुरू हुई। जलते हुए को जला कहना महावीर का मत है, आपके मत के अनुसार तो सर्वथा
जले हुए को ही 'जला' कहा जा सकता है।" प्र. ५३५ ढंक श्रावक के समाधान से साध्वी प्रियदर्शना
के अन्तश्चक्षु खुल गये। उसे लगा जमालि का कथन युक्तिरहित एवं अव्यावहारिक 'है । .
है। साथ ही वह अनुगमन तत्त्व-चिंतन से .... नहीं, मोहवश कर रही है। प्रियदर्शना की
अन्तरात्मा जागृत हो . उठी। जमालि का