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. ( २६६ ) भगवान की कृश काया को देखते रहे। फिर वोले-"भगवान् ! वीमारी से पाप कृश हो रहे
हैं, इसे मिटाने का क्या कोई उपाय नहीं है ?" प्र. ५१७ म. स्वामी ने सिंह अरणगार से क्या कहा था ? उ. में ढिय ग्राम में रेवती गाथापत्नी के पास इसकी
औषधि है। उसके पास दो औषधियाँ हैंएक कुम्हड़े से बनी हुई और दूसरी वोजोरे से बनी हुई। पहली औषधी उसने मेरे लिये बनाई है, अतः वह अकल्प्य है , दूसरी औषधि उसने अन्य प्रयोजन से बनाई है, तुम उससे दूसरी (वीजोरेवाली) पोषधि की याचना करो।
वह रोग-निवृत्ति में उपयोगी सिद्ध होगी।" प्र. ५१८ म. स्वामी के संकेतानुसार सिंह अरणगार ने
क्या किया था ? प्रभु के संकेतानुसार सिंह अणगार मेंढिय ग्राम में गये, रेवती से उन्होंने बीजोरापाक को
याचना की। प्र. ५१६ सिंह प्रणगार को बीजोरापाका किराने
दिया था ? उ. रेवती प्राविका ने ।