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एक दिन भगवान महावीर राजगृह के उद्यान में समवसरण में देशना दे रहे थे। रोहिणेय उधर से निकला। उसने कानों में उंगलियां डाल दी । देवानुयोग से उसके पैर में एक तीखा कांटा चुभ गया। कांटा निकालने के लिये उसने हाथ पैर की तरफ बढ़ाये, तभी प्रभु के कुछ शब्द उसके कानों में पड़ गये थे ।
प्र. ३७० म. स्वामी की देशना के कौन से शब्द रोहिणेय के कानों में पड़े थे ?
उ.
"देवताओं के चरण पृथ्वी को नहीं छूते हैं । उनके नेत्र निर्निमेष रहते हैं । उनका शरीर स्वेद रहित होता है और पुष्पमाला सदा विकसित बनी रहती है ।" ये शब्द सुनते ही वह वैचेन हो गया। बार-बार भूलने की चेष्टा करता, पर वह भूल नहीं सका ।
प्र. ३७१ नगरवासियों ने रोहिणेय के आतंक से संत्रस्त होकर क्या किया था ?
नगरवासियों ने महाराजा श्र ेणिक को अपनी कथा सुनाई । श्रणिक ने दस्युराज रोहिणेय को पकड़ने के हजारों उपाय किये, पर सभी