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( २३२ ) झनझना उठे। उसे आज पहली बार अपनी तुच्छता और पराधीनता का भान हुआ। उसके मन में पराधीनता की गहरी पीड़ा जगी। उस पीड़ा से मुक्त होकर पूर्ण स्वाधीनता प्राप्त करने के लिए वह सब कुछ निछावर करने
के लिये तैयार हो गया। 'प्र. २४६ शालिभद्र ने वैराग्य आने पर क्या किया था ?
शालिभद्र वैराग्य आने के बाद धर्मघोष नामक मुनि के सम्पर्क में आया, फलस्वरूप उसे पूर्ण स्वतंत्रता का मार्ग-संयम व साधना के पथ का ज्ञान हुआ। उसके मन में धोरे-धीरे विषयों से विरक्ति होने लगी। प्रतिदिन एक-एक पत्नी और एक-एक शैय्या का परित्याग कर वह संयम-साधना का
अभ्यास करने लगा। “प्र. २४७ शालिभद्र के वैराग्य की बात सुनकर कौन
उदास हो गई थो? . शालिभद्र की छोटी बहिन उसी राजगृही नगरके एक श्रेष्ठी धन्यकुमार को ब्याही हुई थो। उसने अपने भाई के वैराग्य की बात सुनी तो वह बहुत उदास हो गई, आंखें भीग गई।