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सकते हो। प्रमाद का क्षरण ही जीवन में दुर्घटना का क्षरण होता है, तुम दुर्घटनाग्रस्त होकर भी वच गये, अब पुनः उस प्रमाद के दलदल में मत फँसना। दुवारा उस भूल का आचरण मत करना।" प्रभू के सानिध्य में नंदीषण ने प्रायश्चित्त लिया और पुनः कठोर तपश्चरण रूपी अग्नि
में आत्म-स्वर्ण को तपाने में जुट गये। प्र. २१४ म. स्वामी के पास राजगृही में किसने दीक्षा
ली थी ? उ. महाराज श्रोणिक के पुत्र मेघकुमार और
नंदीषेण कुमार ने। . प्र. २१५ म. स्वामी ने १३ वा चातुर्मास कहाँ किया
था ? उ. . राजगृही नगर में । प्र. २१६ म. स्वामी ने १३वें चातुर्मास के वाद किस
ओर विहार किया था ? उ. ब्राह्मणकुन्ड की ओर । . २१७ म. स्वामी ने ब्राह्मणकुण्ड में कहाँ स्थिरता
की थी? .