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कहकर आनेवाला तपस्वी 'अर्थलाभ' में अटका 'अर्थलाभ' से 'भोगलाभ' के दलदल में फंसा और अंत में अलाभ की खाई में गिर गया और
सब कुछ हार गया। प्र. २०८ नंदीषण मुनिने गरिएका के मोह जाल में
फँसने के बाद भी क्या संकल्प किया था? उ. मैं प्रतिदिन कम से कम दस मनुष्योंको प्रतिबोध
देकर ही मुह में अन्न-जल ग्रहण करूंगा। प्र. २०६ नंदीषण मुनि अपने संकल्प पर कितने
दृढ थे! संकल्प का क्रम सतत चलता रहा। एक दिन मध्यान्ह तक यह क्रम पूरा नहीं हो सका । नौ व्यक्ति बोध पा चुके थे पर दसवाँ व्यक्ति था एक स्वर्णकार । वह तार से तार खींचने की
आदत के अनुसार नंदीषण को भी तर्कवितर्क के जाल में इस प्रकार उलझाता रहा कि न नंदीषेण उस जाल को तोड़ सके और न स्वर्णकार ने उनका उपदेश स्वीकार किया। धूप चढ़ चुकी थी। रसोई ठंडी हो रही थी। गरिएका ने बार-बार नंदीषण को बुलावा भेजा, पर नदीषेण भी पाते तो कैसे ? प्रतिज्ञा
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