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मेघकुमार को सबसे अधिक आश्चर्य की बातः लगी कि भगवान् के इस दरबार ( समव -- सरण ) में सब समान आसन पर बैठे थे ।. चाहे देव या देवेन्द्र हों, सम्राट या, महारानी हों या अति साधारण प्रजाजन सर्वत्र समता
।
उ,
का साम्राज्य था, समानता का वातारण था । समानता की इस नई दृष्टि ने मेघकुमार के मन को प्रभावित कर दिया, महावीर की दिव्य चेतना के प्रति आकृष्ट कर दिया । उसे एक अनुभूति हुई; यहाँ कुछ नवीन है, अव तक जो नहीं सुना, नहीं देखा वह यहाँ उपलब्ध है । . मेघकुमार विनय पूर्वक श्रभिवंदन करके प्रभु
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के समक्ष बैठ गया और ध्यानपूर्वक तन्मयता के साथ उनकी अनुपम वाणी का रसपान करने
लगा ।
प्र १७२ म स्वामी की वाणी को श्रवण कर मेघा कुमार को क्या हुआ था ?
प्रभु की अनुपम वारणी में मानव जीवन की महत्ता, उपयोगिता और उसे सफल बनाने की कला का सरल हृदयग्राही विश्लेपरण:
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