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( १५६ ) तोन दिन बीत गये थे, चौथे दिन धनवाह सेठ बाहर से नगर में आया तो घर को सूना देखा, चन्दना भी नहीं दिखाई दी तो इधर-उधर
जाकर उसने पुकारा - "चन्दना ! चन्दना ! प्र. ३७० सेठ के पुकारने पर चन्दनाने क्या कहा था ? उ. चन्दना भूमिगृह में बन्द थी। उसने धीमे
स्वर में उत्तर दिया "पिताजो, मैं यहाँ हूँ।" प्र. ३७१ धनावह ने चन्दना को भूमिगृह में देखकर क्या
किया था? धनावह ने भूमिगृह में बन्द चन्दना को विद्रूप देखा तो वह फुट-फूट कर रोने लगा-"बेटी
तेरी यह दशा ! मेरे जोतेजी तेरा यह हाल ।" प्र. ३७२ चन्दना ने धनावह सेठ को क्या कहा था ?
चन्दना ने धीरज के साथ कहा-"पिताजी ! कष्ट के समय रोने-धीने से वेदना और भी तीव्र हो जाती है, आप धीरज रखिये, आप किसी पर रोष और आक्रोश न करें, यह अपने ही कृत-कर्मों का फल है, आप शीघ्र भूमिगृह
से बाहर निकालिये।" प्र. ३७३ धनावह ने चन्दना को भूमिगृह से बाहर
निकाल कर क्या किया था ?