________________
( १२६ ) में भी उनका कोई प्रभाव नहीं पड़ा, सचमुच . आप अपनी दृढ़ता में सत्य प्रतिज्ञ रहें, मैं अपने निश्चय से पतित हो गया। अब मैं क्षमा
चाहता हूं. आप निर्विघ्न विचरिये।" प्र. २६० म. स्वामी ने संगम देव से क्या कहा था ?..
संगम के वचन सुनकर. प्रभु धीर-गंभीर स्वर
में बोले- "संगम ! मैं न किसी के प्रार्थना. वचन सुनकर प्रसन्न होता हूँ और न आक्रोश
वचनों से क्षुब्ध । मैं तो सदा आत्महित की दृष्टि से स्वेच्छापूर्वक विहार करता हूं। तुमने जो कष्ट दिये, वे मेरे तन को भले ही उत्पीडित करते रहें हो, किन्तु मन तक उनकी वेदना का स्पर्श नहीं पहुँच सका, अतः तुम्हारे प्रति मेरे मन में रत्ती भर भी दोष-रोष या. आक्रोश नहीं है ! हाँ एक बात का अफसोस है कि मेरा निमित्त बहुत जीवों के हित व कल्याण का साधन बनता है, वहाँ तुमने अपने निबिड़ कर्म-बंधनों के होने में मुझे हेतु भूत बना लिया। तुम्हें मेरे निमित्त से लगे हुए पापों के कारण घोर दुर्गतियों में कैसे दुःख सहने