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की शांत, तेजोदीत मुख मुद्रा देखकर सहसा उनके चरणों में गिर पड़ा' हे परम योगराज हमारा अपराध क्षमा कीजिये । कृपाकर अपना परिचय देकर उपकृत कीजिये ।" महावीर फिर भी मौन थे । तोसलि ने बार-बार विनय करके प्रभु से श्रद्धापूर्वक क्षमा मांगी और वहाँ से विदा दी ।
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इस प्रकार संगम ने अपनी उपद्रवी बुद्धि द्वारा श्रमण महावीर को हर प्रकार से त्रास, संकट और प्राणान्तक कष्टों से उत्पीड़ित करने की व्यर्थ चेष्टाएँ की मृत्यु के अंतिम चरण फाँसी के तख्ते पर चढ़ाने में भी वह असफल रहा । किन्तु महावीर आज भी प्रशांत प्रमुदित और ध्यान निमग्न दशा में शांति का अनुभव कर रहे थे । ध्यान योग की विशिष्ट प्रक्रियायों से उनका मन तो वज्र-सा हुआ ही, किन्तु फूलों-सा सुकुमार तन भी जैसे वज्रमय हो गया था ।
प्र. २५७ म. स्वामी की संगम देव ने कितने मास तक उपसर्ग दिया था ?
६ मास तक ।