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प्र. २८८ म. स्वामी जब गोचरी के लिए किसी के गृह पधारते तब संगम वहाँ कैसा उपसर्ग देता रहा था ?
उ.
प्रभु आहारार्थं पधारते तो बीच में कच्चा पानी डालकर निर्दोष आहार को दोषी वना देता । लोगों को शंका हो ऐसी प्रभु के अंग पर कृत्रिम विकृतियों को बताना । प्रभु को छः माह तक एक करण अन्न और एक बूँद पानी तक प्राप्त नहीं होंने दिया ।
प्र. २८६ म. स्वामी को घोर उपसर्ग देते अंत में संगम ने क्या किया था ?
हताश, निराश, उदास संगम एक दिन श्रमण महावीर के पास आकर विनम्रता का अभिनय करके बोला - " महाप्रभु ! देवराज इन्द्र द्वारा आपकी धीरता और तितिक्षा की प्रशंसा सुनी, वह अक्षरशः सत्य सिद्ध हुई । मैं उसे श्रसत्य करने पर तुला था, पर मेरे समस्त प्रयत्न व्यर्थ गये, आपको असीम कष्ट और पीड़ाएँ देकर भी मैंने देखा कि आपके हृदय के किसी कोने