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__(8) जंगली हाथी ने दंतशूल से प्रहार कर
महावीर को सूड में पकड़ कर गेंद की तरह आकाश में उछाल दिया, पैरों के
नीचे मिट्टी की भांति रौंद डाला। (१०) हथिनियों ने भी उसी प्रकार अपना क्रोध
उडेल कर त्रास दिया। (११) एक भयंकर पिशाच अट्टहास से शून्य
दिशाओं को भय-भैरव बनाता हुआ प्रभु के समक्ष आया, अनेक प्राणघातक आक्रमण करने पर भी महावीर को
वह चलित नहीं कर सका। (१२) त्रिशूल जैसे तीक्ष्ण नखों वाला बाघ
महावीर पर झपटा, वह स्थान-स्थान से माँस नोचने लगा, पर वे प्रस्तर-प्रतिमा की तरह अचल खड़े थे, उन पर इन
प्राघातों का कोई प्रभाव नहीं पड़ा। (१३) अपनी असफलता देखते हुए भी दुष्ट
संगम हतोत्साहित नहीं हुआ, उसने सोचा भयं की आग में पकाने वाला घड़ा भी प्रेम व मोह की थपकियों से टूट सकता