________________
मनुष्य तो क्या, कोई देव और दानव भी भंगनहीं कर सकता। धन्य है ऐसे महाप्राण अध्यात्म योगी को।" इतना कहते-कहते भक्ति
वश देवराज इन्द्र का मस्तक झुक गया। प्रे. २७५ म. स्वामी की इन्द्रदेव द्वारा प्रशंसा सुनकर
संगमदेव को परीक्षा करने का क्या कारण था? संगमदेव बहुत ही ईर्ष्यालु व अहंकारी था। देवराज इन्द्र द्वारा प्रशंसा सुनकर अपना
स्वमान भंग समझकर । "प्र. २७६ म. स्वामी को पोलास चैत्य में कौन-सा
तप था ? 'उ. महा पडिमा तप ( तीन दिन का उपवास
अठ्ठम तप)। प्र. २७७ इन्द्रदेव द्वारा प्रशंसा सुनकर संगम देव ने क्या
कहा था? "देवराज के मुख से मनुष्य जैसे प्राणी को यह प्रशंसा शोभा नहीं देती. यह मिथ्या स्तुति सिर्फ श्रद्धातिरेक का प्रदर्शन है। मनुष्यों में यह क्षमता है ही नहीं कि वह देवशक्ति के समक्ष टिक सके।"
उ.