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प्र. २५३. म. स्वामी से उत्तर पाकर गौशालक ने क्या
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किया था ?
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प्र. २५४ कूर्मग्राम के निकट गोशालक ने किसको देखा था ?
गौशालक हृदय से संशयशील था । कुतूहल और संशय से प्रेरित हो पीछे से उसने उस नन्हें से पौधे को उखाड़कर वहीं डाल दिया ।
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वैश्यायन नामका एक तापस धूप में खड़ा था। उसकी लम्बी-लम्बी जटायें धरती को छू रही थी जैसे बटवृक्ष की शाखाएँ हों । जटा से जूए भूमि पर गिरकर धूप के कारण अकुला रही थी । तपस्वी उन जूत्रों को उठाकर फिर से
अपने सिर में डाल रहा था, ताकि कड़ी धूप
के कारण वे मर न जांय ।
प्र. २५५ गौशालक ने वैश्यायन तापस को क्या
कहा था ?
गौशालक को यह दृश्य बड़ा ही विचित्र सा लगा | उसने श्रमण महावीर को अनेक प्रकार की कठोर तपस्याएँ करते देखा था, पर ऐसा विचित्र तप कभी नहीं देखा, इसलिए गौशालक
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