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( १०३ ) 3; , · मार्ग में तिल का एक छोट-सा पौधा खड़ा था,.
जो रास्ते के करीव था और बहुत संभव था, किसी भी क्षण, किसी भी यात्री के पैरों के तले पाकर रौंदा जाय। उसकी इसी अनिश्चित जीवन-लीला को देखकर कुतूहलवश गौशालक ने महावीर से पूछ लिया-"भंते ! यह तिल-. क्षुप ( पौधा ) अभी तो बड़ा सुन्दर दिख रहा है, इस पर सात फूल भी लगे हैं, पर क्याः
इसमें तिल भी पैदा होंगे?" प्र. २५२ म. स्वामी ने गौशालक के प्रश्न का क्या
उत्तर दिया था ? उ. श्रमण महावीर अपनी गज गति से गमन कर
रहे थे। उनकी दृष्टि तो सिर्फ आगे के पथ पर ही थी। गौशालक के प्रश्न को सुनकर वे रूके, तिल-क्षुप की ओर संकेत कर बोले"गोशालक ! इसमें क्या पाश्चर्य की बात है ? जन्म-मरण की लीला तो अविरल प्रतिपल
चल ही रही है। सात फूलों के जीव इस तिल . की एक ही फली में सात तिल के रूप में उत्पन्न
होंगे-~-यह तो प्रकृति का क्रम है-नगम्य होते . . हुए भी सहज !"