________________
(६० )
ब
मेरे धर्माचार्य हैं, जो तप-त्याग और संयम की
साक्षात् मूर्ति हैं।” 'प्र. २०२ गौशालक के कथन का निर्गन्थ ने क्या उत्तर.
दिया था ? उ. गौशालक की क्षुद्रवृत्ति को देखकर निर्गन्था
बोले-~~"लगता है जैसा तू है, वैसे ही स्वयं
गृहीत-लिंग तेरे गुरु होंगे। गुरु जैसा चेला...।" प्र. २०३ निर्ग्रन्थ की बात सुनकर गौशालक ने क्या
कहा था ? गौशालक क्रोध में आ गया, बोला--"तुम मेरे गुरु की निन्दा करते हो, मेरे धर्माचार्य के तपस्तेज से तुम्हारा उपाश्रय जल कर राख हो
जायेगा। तभी तुम्हे पता चलेगा।" प्र. २०४ म. स्वामी के पास जाकर गौशालक ने क्या
कहा था ? गौशालक मुझलाकर प्रभु के पास आकर वोला-'भगवन् ! आज तो आरंभी और परिग्रही श्रमणों से मेरा पाला पड़ गया, ढेर सारे वस्त्र, उपकरण रखते हए भी अपने को निर्ग्रन्थी बताने का ढोंग रच रखा है उन्होंने ।'
उ.