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गौशालक ने ग्वालों को सावधान करते हुए कहा- “सुनते हो! ये त्रिकालज्ञानी देवार्य कहते हैं, यह हंडिया फट जायेगी और खीर. मिट्टी में मिल जायेगी।"
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प्र. १८३ गौशालक की बात सुनकर ग्वालों ने क्या कहा?
ग्वालों ने गौशालक की ओर तिरस्कार भरी दृष्टि से देखते हुए कहा-देखते हैं कैसे फटेगी हंडिया ।" उन्होंने बाँस की खपाटियों से कस कर बाँध दिया और चारों ओर से घेरकर बैठ गये।
प्रभु तो आगे चले गये थे, पर गौशालक तो खीर की लालसा से वहीं रुका रहा । हंडिया दूध से भरी थी और चावल भी मात्रा से अधिक थे। जब दूध उबला, चावल फूले तो हंडिया तडाक से दो टुकड़े हो गई, खीर धूल में मिल गई और साथ ही गौशालक की आशा भी। वह बहुत निराश हुआ और यह कहते हुए आगे चला "होनहार किसी भी उपाय से टलता नहीं।"