SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 10
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ S "रह सकते । मैं तो इससे अत्यन्त प्रभावित हुआ हूँ | मेरा - खयाल है कि इस पुस्तक के प्रकाशन से सहस्त्र २ जनता अवश्य लाभान्वित होगी और बीसों प्रावृत्तियां प्रकाशित होंगी । जनसाधारण के लिए यह अनुपम पुस्तक है ही विद्ववर्ग के लिए भी बहुत कुछ जानकारी उपलब्ध कराती है । आनन्द की बात यह है कि जैसे आम खाया नहीं जाता - चूसा जाता है और रुक-रुककर वह ग्राह्लाद की अभिव्यंजना व्यक्त करता है । जब हम रुक-रुक कर उसे चूसते है तब वह स्वाद का भरपूर आनन्द देता है । उसीभाँति प्रस्तुत पुस्तिका के सभी प्रश्न व उत्तर आम की गुठली की तरह मधुर व रससिक्त हैं । जब हम एक-एक कर प्रश्न के उत्तर को चूसेंगे, तब अपूर्व आनन्द व ज्ञान की निष्पत्ति होगी । संक्षेप में इतना ही कहना चाहता हूँ कि भगवान महावीर के अलौकिक जीवन के अनेक पहलुनों पर दृष्टिपात करते हुए इस ग्रंथ ने कई भावों को उजागर किया है और चमत्कारिक ढंग से हमारी अनेक जिज्ञासानों को परितृप्त किया है। वस्तुत: यह प्रयास भूरि-भूरि प्रशंसा और हार्दिक बधाई का पात्र है । Co आनंद-मंगलं " जयंत मुनि पेटरवार (विहार) : दि ० २-४-८५
SR No.010409
Book TitleMahavira Jivan Bodhini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGirishchandra Maharaj, Jigneshmuni
PublisherCalcutta Punjab Jain Sabha
Publication Year1985
Total Pages381
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy