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वदल दिया इतिहास धरा का, महाकाल का बल रोका। नफरत की काली आधी फिर, दे न सकी जग को धोखा ॥ चुटकी भर शक्ती को लेकर, रथ निकला विज्ञान का। पुण्य-दिवस हम मना रहे है, महावीर भगवान का।
(२५)
भूखण्ड बिछा आकाश ओढ, अक्षर के दीपक जला गये। दीपावलि को पावा पुर मे, ज्ञान ज्योति मे समा गये ।। हुई कृतार्थ भूमि भारत की, इनकी परछाई छूकर । अक्षय अटल अमर होगा वह, इनके वचनामृत सुन कर ॥ शंख नाद में स्वर गूजेगा, उनके गौरव गान का। पुण्य-दिवस हम मना रहे है, महावीर भगवान . का ॥
(२६)
तेरी छवि-छाया हिल मिल कर, प्राणो मे चुभ-चुभ जाती। मुखरित कण्ठो की मणिमाला, हृदय-हार वन लहराती ।। जीवित रहे धरा पर प्राणी, ऐसा शब्द शृङ्गार किया। सम्यग्दर्शन ज्ञान चरित से, जन हित का उद्धार किया । दीनो का रखवाला था वह, साथी था अनजान, का। पुण्य-दिवस हम मना रहे हैं, महावीर भगवान का।