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जिनके पलक इशारो से ही, शीश झुका अभिमान का ।
पुण्य - दिवस हम मना रहे है, महावीर भगवान
का ||
(२२) कठिन तपस्या वारह वर्षी, दिव्य सुधा रस भर लाई । वीत गये व्यालीस वर्ष जव, ज्ञान ज्योति दौडी आई ॥ कर्मवाद और साम्यवाद का, हँस कर रिश्ता जोड़ दिया । आकिंचन्य दिया दुनिया को, जग से मुखड़ा मोड़ लिया || कला-कीर्ति की वीणा पर था, मिटा तिमिर अज्ञान का पुण्य - दिवस हम मना रहे है, महावीर भगवान
का ॥
(२३) सत्य और शिव को लेकर, सुन्दर स्वर्णिम कलश गढे । वीतरागता के सम्बल से, स्याद्वाद के वचन पढ़े || उज्ज्वल शीतल शात मधुर, चिन्तन दर्शन को दिखलाया । आदि अन्त की भूल मिटाकर, प्रतिशोधो को ठुकराया || काम क्रोध का पहरा टूटा, सुख जाना सम्मान का । पुण्य - दिवस हम मना रहे है, महावीर भगवान
का ॥
(२४) वैशाली गणतंत्र मध्य मे, भाग्य जगे कुड ग्राम के 1 घर वैठे ही चरण मिल गये, उनको तीरथ धाम के ||