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त्रिशलानन्दन
चरणो में शत-शत वन्दन, काट दिये है स्वयं जिन्होने, कर्म-जाल के दृढतम बन्धन,
जिनका जीवन । गर्भ-जन्म-तप-ज्ञान-मुक्ति का सुरभित चन्दन,
उनके ही इस रजत-शतक पर,
पचम गति की प्राप्ति हेतु है,
मोक्ष लक्ष्मी का अभिनन्दन । आओ घृत के दीप जलाएँ,
धरती पर अमृत बरसाएँ, मिट जाये भव-भव का क्रन्दन,
महावीर हे त्रिशलानन्दन । परम पुनीत पच्चीसवें शतक पर भाव भीनी विनयाञ्जलि
__ अर्पयिता :परमानंद लखमीचंद जैन सराफ गौरमूर्ति-सागर (म० प्र०)