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हे धर्म तीर्थ प्रवर्तक महावीर प्रभो !
आप उत्तम गुणों के सागर अठारह दोषो से वर्जित
मोक्षमार्ग प्रणेता अष्ट कर्म रिपु सहारक पचेन्द्रिय विषय कषाय विजेता पंच महाव्रत-पंच-समिति तय गुप्ति के
अधिष्ठाता अत्यन्त महिमा से मडित निष्कारण तारण तरण
एव मोहान्ध कार के विध्वसक है
हे नाथ आप की स्तुति जव गणधर इन्द्र भी नही कर सकते
तो मैं किस खेत की मूली हूँ
अतः नमस्कारो मे ही सारी स्तुतियें गूथ रहा हूँ। परम-पुनीत पच्चीस वे शतक पर भाव-भीनी विनयाञ्जलि
__ अर्पयिता - सेठ पारसदास श्रीपाल जैन मोटर वाले
१४७० रगमहल एम० पी० मुकर्जी मार्ग देहली
११०००६