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हे भव्य जीवो। मेरा सुदूर अतीत भी तुम्हारे सदृश्य ही हीयमान होकर
भव-भ्रमण के निविड तिमिर मे अनत कल्पकालो से असहाय भटकता फिरा
किन्तु ज्यो ही मैने अपने स्वरूप का भान किया आत्म-साधना का दृढ व्रत ठान लिया
त्यो ही चल पडा सम्यक् रत्नत्रय के पथ पर मेरे जीवन का रथ
और जाकर रुका रुका वहा लोकाग्र के शिखर पर जहा पर मेरी अन्तिम मजिल थी
सिद्ध-शिला तो तुम भी आओ वही उसी पथ से मैं तुम्हारा प्रकाश-स्तम्भ बन कर कव से खडा हु।
मैं स्वयं वर्द्धमान हूं तुम भी स्वय सिद्ध वर्द्धमान हो जरा अपनी ओर निहारो तो
मेरा
वरद-हस्त तुम्हारे ऊपर है परम-पुनीत पच्चीस वें शतक पर भाव-भीनी विनयाञ्जलि
अर्पयिता - चौधरी खेमचंद मुन्नालाल जैन
आचवल वार्ड वीना (जिला-सागर) म प्र कुशल कारीगरो द्वारा हिंदनुतारणहार (चरखा छाप) वीडी के
एकमात्र निर्माता