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हे महावीर प्रभो। वह भी एक कूप मडूक था ! मैं भी एक पर्यायमूढ कूम-मडूक हू !!
वह पशु पचेन्द्रिय था मैं मनुष्य पचेन्द्रिय हू किन्तु ।
नाथ । उसकी भाव-भीनी भक्ति वदना-पूजन-अर्चना ने एक कमल पांखुरी लेकर ही उसकी
वह तुच्छ पर्याय छुडा दी
और सुर-पर्याय प्रदान की
फिर आप ही वतलाईये आप की पुनीत सेवा मे
मैं क्या प्रदान करूँ कि मुझे वैयक्तिक पर्याय से
मुक्ति मिले परम-पुनीत पच्चीस वें शतक पर भाव-भीनी विनयाञ्जलि
अर्पयिता - सतपाल क्लाथ स्टोर प्रो. परमानन्द जेऊमल सिंधी स्टेशन रोड खुरई (सागर) म प्र.