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जो गृहस्थावस्था त्याग कर मुनिधर्म साधन द्वारा चार घातिया कर्म नष्ट होने पर
अनंतचतुष्टय प्रगट करके कालान्तर मे
चार अघातिया कर्मक्षय होने पर पूण मुक्त हो गए हैं
तथा
जिनके द्रव्यकर्म, भावकर्म, नोकर्म का सर्वथा अभाव होने से समस्त आत्मीक गुण प्रगट हुए हैं और
जो लोकाग्र शिखर पर किंचित न्यून पुरुषाकार विराजमान हैं। ऐसे
सिद्ध परमेष्ठी श्री महावीर परमात्मा
हमारे निरन्तर आराध्य वने रहे
परम-पुनीत पच्चीस वे शतक पर भाव-भीनी विनयाञ्जलि अर्पयिता
जयन्ती प्रसाद सुकमाल चन्द जैन मु पो. खेडा लइ० सरधना
( जिला मेरठ) उ. प्र