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चंड कौशिक सर्प कृत उपसर्गो पर वीर-विजय
(श्वेताम्बर शास्त्रो पर आधारित)
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चले उसी वन वीर जहाँ वह सर्प चडकौशिक रहता था। जहरीली फुकारो से जो दावानल बन कर दहता था । क्रोधित होकर ज्यो ही उसने डसा वीर प्रभू के मृदु पग मे। लगी निकलने धार दूधिया त्यो ही अगूठे की रग मे ।।
(१२३)