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निर्ग्रथ मुति प्रिय मित्र कुमार का जीव सहस्त्रार स्वर्ण में अध्यन, रत
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फिर आयु पूर्ण कर मुनिवर ने द्वादश स्वर्ग मे गमन किया । भोगो से रह कर अनासक्त सुर ने निज का अध्ययन किया || थी सूर्य प्रभा सम दिव्य देह शुभ आयु अठारह सागर की । निज ज्ञान चेतना मय परणति की महिमा वहाँ उजागर की ॥
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