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निग्रंथ तपस्वी प्रियमित्र कुमार
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सुन कर जिनवर वाणी को वे उद्बोधन को प्राप्त हुए। निर्ग्रन्थ तपस्वी बन कर निज अन्तश्चेतन मे व्याप्त हए । रत्नत्रय चारो आराधन पाचो व्रत समिति पालते थे। त्रय गुप्ति सहित वे भाव द्रव्य आश्रव ही सतत टालते थे।
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