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हरिषेण मुनि श्री का जीव महा शुक्र स्वर्ग में
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धर्म और पुण्यो के फल से प्राप्त हुआ तव स्वर्ग दशम । अन्तर्मुहूर्त मे हुए युवा तन धातु रहित था दिव्योत्तम ॥ निज अवधिज्ञान से जान लिया यह वैभव धर्मो का फल है । चचल भोगों मे इसीलिये वह रहा वहाँ भी अविचल है || ( E =)