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दिवेकी सम्यक्त्वी सिंह पश्चाताप मौनमुद्रा में
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अव सम्यक् दर्शन धारण कर श्रावक के व्रत स्वीकार करो। हे मृगपति पशु निर्दोषो का, मत आगे अव सहार करो। मुनिश्री का उपदेशामृत मुन आँखो से ऑसू टपक पडे । प्रायश्चित पापो का करके, मगपति चरणो मे लुढक पडे ॥
(६१ व)