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नारायण द्वारा गायक शय्यापाल
पर आक्रोश
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गायक गच्यापाल किन्तु था गाने में इतना तल्लीन । राजा के निद्रित होने की खबर न उसको हुई स्वाधीन ।। ब्बर लहरी ने निद्रा ट्टी नहीं क्रोध का पारावार । गायक के मुन्द्र-कर्ण डाल दी गर्म गर्म शीशे की धार ।।