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शांडली पुत्र स्थावर द्विज के रूप में
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जन्म मरण के साठ लाख तक कष्ट असंख्या काल सहे। शुभ कर्मो से शाडली (क) के स्थावर द्विज बाल रहे ।। इह भवघाती आत्म हनन ही सब से दुखकर पाप यहा है। जन्म जन्म घाती मिथ्यात्वी । वना पाप का बाप यहा है ।