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मनुष्य - देव पर्यायों के पश्चात (मारीच जीव निगोद में)
कन्द मूल निगोद जीव
8 अबलोकन
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आलू शकरकद लहसुन में, फिर उपजे फिर और मरे । एक देह मे ही अनत, अक्षर अनतवाँ ज्ञान धरे । सिद्धों का सुख एक ओर था, उससे उतना ही विपरीत । दुख निगोद मे नरको से भी अधिक सहा था वचनातीत ॥
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