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समर्पण
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जिनका केवल जान चराचर, लोकालोक विलोकी दर्पण । महावीर श्री चित्र-शतक यह, उनके ही चरणो मे अर्पण ।। यद्यपि यह उपचार मात्र है, तो भी निश्चय जागरूक है। वाचक जितना ही मुखरित है, उतना ही यह वाच्यमूक है ।।
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