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वर्द्धमानश्री की सार्थकता
२४४
इन पच्चीस शतक वर्षों मे, बदल चुका इतिहास जगत का । भौतिकता की चकाचौध मे, विस्मृत हुआ नाम भगवत का ||
२४५
अवसर्पिणि कलिकाल पाचवा, इसमे सब कुछ हीयमान है । वीर- पथ पर चलने वाला, चेतन ही बस वर्द्धमान है ||
युग-युग की मंगल कामनाएँ
महा गर्भ कल्याणक जन्म-कल्याणक
महा
दीक्षा - कल्याणक ज्ञान- भानु
केवल
२४६
धारी, महावीर धारी, वर्द्धमान
कल्याण
भव-ताण
२४७
धारक, हे वीर नाथ मंगल प्रकटाओ, हे सन्मति केवल
२४८
परम मोक्ष कल्याणक पथ पर, हे अतिवीर लगा पच परम गुरू के वचनो से, भव-भव हमे
२४६
करो ।
हरो ॥
कारी |
धारी ॥
देना |
जगा देना ||
पच्चीस शतक वौं यह शताब्दी, युग युगांन्त तक रहे अमर । महावीर का जीवन दर्शन, अनुप्राणित होये घर-घर ॥