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स्वाथ लोभ वश पडों द्वारा, टिकट स्वर्ग के बाटे जाते ॥
१५३ नग्न नृत्य देखा हिंसा का, धर्म नाम पर आत्म भ्रान्ति को । देखा करुण-किशोर वीर ने, अत. जगाया लोक क्रान्ति को।
१५४ उसी क्रान्ति के फल स्वरूप ही, आज न दिखती वैदिक हिंसा । महावीर से गाधी युग तक, जीवित है सत् शान्ति अहिंसा ।।
१५५ शूद्रो के प्रति घोर घृणा का, छुआछूत का भूत भगाया । ऊँच-नीच का भेद हटा कर, नारी का स्वातन्त्य जगाया ।।
घोर परिग्रह स्वार्थवाद ने, गडवड कर दी सभी व्यवस्था । धर्म और नैतिकता महँगी, भ्रष्टाचार हुआ था सस्ता ।।
१५७ उस युग का यह दृश्य देख कर, तरुण वीर ने दृढ प्रण कीना । - और लोक हित तथा आत्म-हित, करने ब्रह्मचर्य व्रत लीना ।।
१५८ लावण्य अलौकिक था किशोर का, आये शत विवाह प्रस्ताव । मॉ का आग्रह हुआ पराजित, देख वीर का शील स्वभाव ॥ विरागी वीर का दीक्षा तथा
तप कल्याणक
१५६ युवा वीर ने तीस वर्ष तक, सफल संभाला युवराजत्व ।