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१४१ अच्युत स्वर्ग से उतर इन्द्र, प्रियकारिणि की कुक्षि पधारे । आषाढी षष्ठी शुक्ला को हुये, पूर्ण गर्भोत्सव सारे ॥
१४२ पन्द्रह महिने तक देवो ने, पृथिवी . पर बरसाये हीरे । माता ने देखे शुभ सोलह, सपने सार्थक धीरे धीरे ।।
१४३ स्वर्गों की छप्पन कुमारिया, जननी की परिचर्या करती । विविध पहेली बूझ बूझ कर, गर्भ-भार माता का हरती ॥
वीरश्री का मांगलिक जन्म महोत्सव
१४४ चैन सुदी शुभ त्रयोदशी को, हुआ जन्म कल्याणक भारी । इन्द्रो द्वारा पाडुक-वन मे, अभिषेको की हुई तैयारी ॥
इन्द्राणी ने मायामय शिशु, सौर-भवन मे सुला दिया था। इन्द्रो ने मिल सपरिवार शिशु, वर्द्धमान अभिषेक किया था ।