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सिंहकेतु देव
१२१ सम्यक्त्व सहित जव मरण किया, सौधर्म-स्वर्ग का देव हुआ । थी सिंहकेतु सजा उसकी, अरिहंत भक्त स्वयमेव हुआ ।।
१२२ अभिषेक जिनेश्वर का करता, वह सम्यक् दृष्टी भव्य महा । चैत्यो की नित्य वन्दना से, वह जगा रहा भवितव्य वहाँ ।।
१२३
कनकोज्ज्वल राज कुमार
• १२४ सौधम स्वर्ग से चय कर फिर, कनकोज्ज्वल राजकुमार हुआ। देश कनकप्रभ नृपति पंख, विद्याधर घर अवतार हुआ।
१२५ निर्ग्रन्थों के उपदेशो से, हुआ प्रभावित वैरागी । सम्यक् तप प्रभाव से पाया, सप्तम स्वर्ग महाभागी॥
राजा हरिषेण
आयु पूर्ण कर वह सम्यक्त्वी , अवधपुरी युवराज हुआ । वज्रसेन सुत हरीषेण नामक, श्रावक सिरताज हुआ।